Wednesday, 6 April 2011

Girraj ji chhappan Bhog ke Darsan


lapkyd & lksuw tks’kh%&गोवर्धन पर्वत उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के अंतर्गत आता है । गोवर्धन व इसके आस पास के क्षेत्र को ब्रज भूमि भी कहा जाता है ।
यह भगवान श्री कृष्ण की लीलास्थली है| यहीं पर भगवान श्री कृष्ण ने द्वापर युग में ब्रजवासियों को इन्द्र के प्रकोप से बचाने के लिये गोवर्धन पर्वत अपनी तर्जनी अंगुली पर उठाया था। गोवर्धन पर्वत को भक्क्तजन गिरिराज जी भी कहते
हैं।
आज भी यहाँ दूर दूर से भक्त जन गिरिराज जी की परिक्रमा करने आते हैं । यह ७ कोस की परिक्रमा लगभग २१ किलोमीटर की होती है । मार्ग में पडने वाले प्रमुख स्थल आन्यौर, राधाकुंड, कुसुम सरोवर, मानसी गंगा, गोविन्द कुंड, पूंछरी का लोटा, दानघाटी इत्यादि हैं ।

Ram Lila



Lokeh pUnz’ks[kj tks’kh&&रामलीला में रामायण का स्वरूप पूरी तरह रामचरित्रमानस पर आधारित है, जोकि उत्तर भारत में कथा कहने का एक बहुत ही प्रचलित माध्यम है। राम के गौरव का वर्णन तुलसीदास ने 16वीं सदी में ब्रजभाषा में किया था ताकि इस महाकाव्य को सभी लोगों तक सरल भाषा में पहुंचाया जा सके। रामलीला प्रोग्राम में अधिकतर संभाग रामचरित्रमानस से लिया गया है जिसका मंचन दशहरा के दौरान पहली से लेकर दसवें दिन तक होता है, लेकिन रामनगर में रामलीला एक महीने तक चलता है।


Ras lila



Lokeh pUnz’ks[kj tks’kh && रासलीला या कृष्णलीला युवा और बालक कृष्ण की गतिविधियों का मंचन होता है। कृष्ण की मनमोहक अदाओं पर गोपियां यानी बृजबालाएं लट्टू थी। कान्हा की मुरली का जादू ऐसा था कि गोपियां अपनी सुतबुत गंवा बैठती थी। गोपियों के मदहोश होते ही शुरू होती थी कान्हा के मित्रों की शरारतें। माखन चुराना,मटकी फोड़ना,गोपियों के वस्त्र चुराना,जानवरों को चरने के लिए गांव से दूर-दूर छोड़ कर आना ही प्रमुख शरारतें थी,जिन पर पूरा वृन्दावन मोहित था। जन्माष्टमी के मौके पर कान्हा की इन सारी अठखेलियों को एक धागे में पिरोकर यानी उनको नाटकीय रूप देकर रासलीला या कृष्ण लीला खेली जाती है। इसीलिए जन्माष्टमी की तैयारियों में श्रीकृष्ण की रासलीला का आनंद मथुरा, वृंदावन तक सीमित न रह कर पूरे देश में छा जाता है। जगह-जगह रासलीलाओं का मंचन होता है, जिनमें सजे-धजे श्री कृष्ण को अलग-अलग रूप रखकर राधा के प्रति अपने प्रेम को व्यक्त करते दिखाया जाता है। इन रास-लीलाओं को देख दर्शकों को ऐसा लगता है मानों वे असलियत में श्रीकृष्ण के युग में पहुंच गए हों।